कोई नहीं
हवा है यह
अपने ही आवेग में उलझी
सागर सारा जद्दोजहद में है
जंगल रक़्साँ है हर सू
समूची सृष्टि
बिखरी जा रही जैसे—
ठहराने हवा को
किसी लय में कहीं ।
—
11 सितम्बर 2009
कोई नहीं
हवा है यह
अपने ही आवेग में उलझी
सागर सारा जद्दोजहद में है
जंगल रक़्साँ है हर सू
समूची सृष्टि
बिखरी जा रही जैसे—
ठहराने हवा को
किसी लय में कहीं ।
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11 सितम्बर 2009