हर कोई भाग रहा किसे फुर्सत है?
शहर बन गया है तमाशाबीन
कोई दर्द से चीखता-कराहता
पर कोई करता तक धिनाधीन.
कोई दौलत के पीछे तो
हर कोई शोहरत के पीछे
बेहताशा इस क़दर भाग रहा
की किसे फुर्सत है?
इस भागम-भाग में तो लोग
अपने आप को भूल गए
रिश्ते-नाते सब ईधर-उधर
रिश्तों की मर्यादा टूटकर बिखर गए.
बेशुमार दौलत की चाहत में
कुछ भी करने को तैयार
अब तो फ़र्ज़ अदायगी भी याद नहीं
कौन समझे, किसे फुर्सत है?
बिकास की अंधी दौर में हम
प्रकृति को ही छेड़ बैठे
प्राकृतिक बिपदा दस्तक दे रही
फिर भी न सोचे, किसे जरूरत है?
मनुष्य अपने ही बिनाश को है बेताब
वेबजह भी, हर कोई भागम-भाग
प्रकृति के साथ चलने में ही भलाई
मगर कौन सोचे, किसे फुर्सत है?
अपनेपन की बजाय, अब तो लोग
फ़िल्मी ठुमको में खुशियाँ तलाशते
आस-पड़ोस के हँसी-ठहाके सब गायब
लाफ्टर और कॉमेडी नाईट से जी लेते.
क्या हो गया उन सभी को?
अपने ही सामजिक कर्तब्य भूलकर
मनुष्य और मानवता सब पीछे छूटे
"किशन" किससे कहे, किसे फुर्सत है?