किस कदर सहमा हुआ है ख़ौफ़ से सारा शहर
बन गए कूचे सभी ज्यों नादिरों की रहगुज़र
हादसों की तालिका ही बन गया अख़बार है
गंध बारूदी लिए है हर सुबह ताज़ा ख़बर
मरगजी फिर हर दिशा खाक़ी हुआ फिर आसमां
फिर ज़मीं पर हो न जाने कौन-सा बरपा कहर
बीच लपटों के घिरा गुलशन तुम्हारा बुलबुलो
शाख पत्ते फूल तक अब आन फैला है ज़हर
क्या पता कब तक चलें ये तीरगी सिलसिले
इस मकां से तो अभी तक दूर है कोसों सहर