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कींकर रैवेला स्यान / मदन गोपाल लढ़ा

कांई ठाह कींकर
इती खेचळ पछै ई
मांयलै आसरै में
रहग्यो अळसीड़ो।

हणै ई तो
म्हैं बुहारी सूं
झाड़यो आखो आसरो
जाळा उतारया
कूटळो भेळो कर‘र
बारै न्हाख्यो
आलै कपड़ै सूं
मसोतो भळै लगा दियो
कै कदास
एकर तो चमक जावै
म्हारो ई आसरो
कांई ठाह कद
म्हारैं आंगणै
बटाऊ बावड़ जावै!

डागळै कागला
बोलतां सुण‘र
म्हैं डरूं मनोमन
कै कींकर रैवैला स्यान
क्यूंकै
म्हारै आसरै रै खुणां-खचूणां
अळसीड़ै रा ढ़िगळा लाग्योड़ा है
अर बटाऊ
आंवतो ई हुवैला!