की लय मधुमास मनाउ?
नव हरिअर वन,
नव मुदित सुमन,
तरु तरु पर गुंजित
मधुकर - गण
मधुकण बिनु नीरस कण्ठ हमर, की मधुमय तान लगाउ?
उर बीच ज्वलन,
अति विकलित मन,
वाणीपर नित
नव नव बन्धन,
रहि निराहार रागिनि बहार कम्पित स्वरसँ की गाउ?
की कहब अपन
दुखमय जीवन,
नीरवपर भीषण
असह दमन,
करु गायन वा चिर गौरव पर हम दृगजल अपन चढ़ाउ?
के करत भरण?
भए रहल हरण,
पद-पद पर
दारुण अनुशासन,
शिथलित वीणापर वेदनाक हम की अनुभूति सुनाउ?
कत करत सहन
ई जर्जर तन,
की उचित हमर
ई मूक मरण,
वा स्विग्ध-हीन निष्प्रभ दीपक हम अन्तिम ज्योति देखाउ?