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की हुलकऽ हा / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

ऊ देखो हुलकऽ हो
भुलको हो
ओकरा पुछहो
कि तो की हुलकऽ हा
लँहगा ले लुलकऽ हा
लँहगा में के सफेद-सफेद बुट्टा
मैल हो गेलो हे कुकुट्टा
ई मैली के
जोंक पकड़ै ले
चाही लाल लाल चुट्टा,
नै कह दे हियो
कि चिहुंटते रहबा,
हमर बात के गाड़ी
धड़-धड़ पास कर जैतो
तों हमर
होंठ के पलेटफारम पर
छूंटते रहबा
हमर मुँह के स्टाप दाँत
किटकिटाते रहतो
तन केतनैं फुलैबा
लेकिन मन
हमर बात के डांग से
सूप सन डेंगाते रहतो।