कुंडिनपुर एक नगर बसतु हे, जहाँ बसे भिखम नरेस
रानी मनभावत चरन मनावत, कि भये सुता ब्याहन जोग।।१।।
इहवाँ से उठि जब चललन राजा, रुकुमिन आगे भइले ठाढ़
कहु-कहु रुकमिन कवन बर खोजीं, सेहो मोके देहु ना बताय।।२।।
ऊँचकहि बाबा चउरा पुरहट, पाट बन्हइह अस धीर
अपना जोगे बाबा समधी खेजिह, धिया जोगे खोजिह दामाद।।३।।
जाहु-जाहु बाबा तू नगरी दोअरिका, जहाँ बसे नन्द के लाल
हाथ कंगन लगले तुलसी के माला, उनहीं के तिलक चढ़ाउ।।४।।
जखन बर देखिह बाबा चामक-चीमक, अइंठी बान्हे सिर पाग
तखन बर बाबा बचन जनि हरिह, उहे हउवें ठग बटमार।।५।।
जवन वर देखिह बाबा धामर-धूसर, कन्हवा पर लिहले कुदार
तवन बर के बाबा तिलक चढ़इह, उहे हउवें कन्त हमार।।६।।