कुआँ
मैं एक कुआँ हूँ,
गहरा कुआँ ,
मेरे अन्दर के अँधेरे में भी शांति है ,
शीतलता है ,...
क्योंकि मैं जल से ओत प्रोत हूँ,
जल...
प्रेम का जल ,
अपनत्व का जल,
ममता का जल,
संस्कार का जल,
श्रधा के समर्पण का जल,
जल ही जल ,
चहुँ और मेरे
जल ही जल,
मेरा अपना एक ठौर है ,
मेरी अपनी एक स्थिरता है ,
मेरी अपनी एक गहराई है,
मैं एक कुआँ हूँ,
संतुष्ट हूँ पूर्णतया अपने में
क्योकि....
मुझे नहीं जाना किसी समुन्द्र के आगोश में ,
नहीं गुजरना किसी बियाबान जंगल,पहाड़ गुफाओं से
मुझे नहीं इन्तजार वर्षा ऋतू का ,
मेरे अन्दर पूर्णता है ,
मेरे अन्दर मेरा अपना संसार है
मेरा प्यार....
मेरे स्वाति नक्षत्र की दुर्लभ बूँद ,
मेरे ही भीतर समाई हुई है ,
और इसी लिए मुझे
कुछ पाने की आस नहीं,
कुछ खोने का भय नहीं
मैं एक कुआँ हूँ...
अपनी चारदीवारी में घिरा मैं,
अपने आधिपत्य से ,
अपनी दुनिया में
लीन,तृप्त, समाहित.,समर्पित ..
हाँ...तुम्हें
जल के लिए कभी इनकार नहीं ,
जितना चाहो, जब चाहो,
पर
एक बार भलीभांति ,
अपने बर्तन में देख लेना
झांक लेना
कहीं कोई छिद्र न हो ,
अपनी भुजाओं का बल आंक लेना ,
जितना दम हो,
बस उतना ही उठाना
वर्ना संभाल नहीं पाओगे ,
बह जाएगा जल,
बिखर जाएगा यत्र, तत्र ,सवर्त्र
ना, ना ....
मुझे कोई अभाव नहीं होगा
क्योंकि,
धरती माँ की छाती से निकला ,
मेरा जल
कभी समाप्त नहीं होगा,
अनवरत....
ये जल निकलता रहेगा...
हाँ
भय तो तुम्हारे लिए है,
कहीं अपनी निर्बलता पर,
कहीं अपनी असफलता पर तुम
निराश न हो जाओ
कहीं लज्जा से न भर उठो
इस लिए
मुझ तक आने से पहले
जान लेना ये सब
भलीभांति,
कि.....
मैं एक कुआँ हूँ.....
हाँ...मैं एक कुआँ हूँ