Last modified on 11 जनवरी 2015, at 10:23

कुचले पड़े दूब के तिनके / विजेन्द्र

हरे पत्तों की नसें में देखता रहा हूँ
अपने विशाल देश की धातुक पकी इच्छाएँ
पेड़ के खुरदरे तने में
ऋतुओं के खुले चक्र
आओ, तुम भी आओ
मेरे अकेने पन के घनत्व को
उँगली गढ़ा कर देखो
वसंत से अब
मेरे सारे रिश्‍ते खत्म हैं
कुचले पड़े दूब के तिनको में
देखी मैंने अपनी आहत नियती
क्या करू उस सूर्य का
जो मेरी अंधेरी कोठरी में
नहीं झाँकता
स्याह पत्थरो का अंबार
अँधेरे खौफनाक तल घर
आदमी की खाल उधेड़ने वाले नाखून
सब कहते हैं दुख भरी गाथांये ।
तुम्हारे अगाध-उजले प्यार की वजह से
जिंदा हूँ
अपने चूगते हंस को बचाओ-
ओ मेरे विधाता
बड़े दुखद निर्णय लेने पड़ रहे है