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कुछ और चम्मच दुख / रजत कृष्ण

जीवन की मेरी प्याली में
दुःख की चीनी
क्या कम थी
जो तुमने उड़ेल दिए
कुछ और चम्मच दुःख !

खैर,
कोई बात नहीं
पियूँगा इसे भी...
पीता आया हूँ जैसे गरल
फेनिल काली रातों का ।

जीता आया हूँ
लड़-भिड़ कर
साक्षात यम से जैसे
मैं जीऊँगा...।

चिथड़े साँसों की
फिर-फिर सिऊँगा ।।