Last modified on 13 फ़रवरी 2009, at 00:11

कुछ तो कहो न / रंजना भाटिया

 
कुछ तो कहो न
मुझसे तुम
हो क्यों इतने
मायूस से तुम
बरस रही बदरी
यह रिमझिम
फिर भी ..
इतने मौन से तुम
स्तब्ध हो ..
माटी की मूरत जैसे
पर कुछ उद्वेलित
और कुछ बैचेन से
जैसे किसी तलाश में गुम
पा गई मैं तो तुझ में
अपना ठिकाना
पर न जाने
तुम अब भी
उलझे धागों-से
हो किसी
उधेड़बुन में गुमसुम...