कुछ दु:ख झेलो
कुछ दु:ख ठेलो
कुछ राम भरोसे छोड़ दो।
दुख क्या बन्धु
बहती नदिया
नहीं एक तट रह पाती है।
जिधर चाहती
मुड जाती है
सुख-दुख बहा ले जाती है।
या धारा के संग बहो तुम
या धारा का मुख मोड़ दो।
कुछ दु:ख झेलो
कुछ दु:ख ठेलो
कुछ राम भरोसे छोड़ दो।
दुख क्या बन्धु
बहती नदिया
नहीं एक तट रह पाती है।
जिधर चाहती
मुड जाती है
सुख-दुख बहा ले जाती है।
या धारा के संग बहो तुम
या धारा का मुख मोड़ दो।