Last modified on 27 दिसम्बर 2019, at 14:40

कुछ दोहा / मुनेश्वर ‘शमन’

घूर-फिर फेर बसंत रितु, आके लगल दुआर।
मन-मन के बहका रहल, मह-मह मदिर बयार।।

अमरइया भइ बाबरी, खिल-खिल हँसय पलास।
जियरा के गाँठजोड़ के, टुसिया गेलय आस।।

बबूर वन उमताल अब, लदल-फदल झर बेर।
काँच उमरिया के जिया, फाग रहल हे टेर।।

कसमस अब काया करय, धूप तनिक अलसाय।
सबसे आँख बचाय के, मन में चोर समाय।।

सेमर तो फेंके लगल, लाले-लाल गुलाल।
पूछय पायलिया कते, अज़बे-अजब सबाल।।

रोजे कोयल कलमुँही, रह-रह मारय तन।
हूक हिया में जाग के, होबे लगल जुआन।।

हवा खूब मातल फिरय, बउरल-बउरल लोग।
मिठगर-रसगर भूल के उपजल हे संजोग।।

पसरल बदरा साँवरा, जादू करय कमाल।
बसल पिया परदेस में, जियरा बसल मलाल।।

अबकी बरखा में सखी, सुना-सुना गेह।
बरसय फुहिया रात भर, सुलगय-लहकय देह।।

बरसन बाद मिलाप से, निकसल दिल से सूल।
रागी मन आतुर अधिक, करय लेल फिन भूल।।