हरकारे शब्द
मन की पाती लेकर
कविता की वर्दी में आते हैं
हरकारे शब्द
बर्फ़ और धूप
बर्फ़ पर धूप
चांदी के पिघल रहे हैं पत्थर
रूपा हुआ सोनरूप
पिघल रही है चांदी
सुनकर सूरज का सुखद प्रेमगीत
धीमा, मद्धम-मद्धम
दिनचर्या
नींद से जगना
बहुत सा थकना, तकना
एक सपने की राह
मेहमान
ढला दिन का उजास
गुमसुम उदास सी ख़ामोशी
बैठ गई पास