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कुछ नहीं कहूँगा / नंदकिशोर आचार्य

नहीं, कुछ नहीं कहूँगा
कह कर क्या मरना है

ज़्यादा ख़तरनाक है पर
                    रहना ख़ामोश
बोलने में थोड़ा-सा झूठ
                    चलता है
ख़ामुशी बिना बोले
कह देती सब कुछ

हँसूँगा नहीं—पकड़े जाने के डर से
आजकल सभी हँसते हैं
                     बनावटी हँसी

रो सकता हूँ हाँ
—वक़्त भी रोने का ही है—
पर नहीं रोऊँगा
कहूँगा क्या पूछेंगे जो

सो जाता हूँ, चलो
क्या पूछेगा कोई
देखा ही नहीं जब कुछ
अपने सपनों के सिवा

पर कहीं सपने देखना
सच बोलना तो नहीं ?

19 जून 2009