कुछ भी तो तय नहीं है
कब होगा कहाँ क्या
धूप निकलेगी
या होगी बरसात
कैसे बदलेगी हवा ....
पड़ेगा कहाँ सूखा
आयेगी कहाँ बाढ़
कुछ भी तो तय नहीं है .....
तबाही होगी कितनी
मरेंगे कितने
दानों के लिए कितने भटकेंगे
सिर छुपाने के लिए
कुछ भी तो तय नहीं है
बाहों में काली पट्टियां बांधे लोग
कब पाला बदल कर लेंगे
उनके पीछे चलती हुई इस भीड़ का
कल होगा क्या
कुछ भी तय नहीं है
ये हैं विरोध के लिए विरोध
या कुछ और
बदल भी जाये ‘आदमी’ तो
क्या कुछ बदलेगा ....।