भारतीय सीमा के अमर प्रहरी-1962
मेजर शैतान सिंह
जब तक क्षिप्रा में है कल कल, जब तक गंगा का जल निच्छल
तब तक मेजर शैतानसिंह की, अमर वीर गाथा उज्जवल
जिसने दुस्साश्न चाऊ की, सेना पर प्रबल प्रहार किया
जिसने माँ भारत के ख़ातिर, अपने प्राणों को वार दिया
जिसने बर्बर हमलावार की, फौजों को आग लगा रोका
जिसने गोली बारूदों में, कितने अरि प्रणों को झोंका
जिसने मरते-मरते दम तक, अनगिन दुष्टों का किया दमन
जिसने आहुति की ज्वाला में, फौलादी तन कर दिया हवन
जिसने राजस्थानी गौरव फिर, एक बार कर दिया प्रबल
राणा प्रताप की जगी याद, दुश्मन का कांप गया छल बल।
जब तक शिप्रा में कल कल, जब तक गंगा का जल निच्छल
तब तक मेजर शैतानसिंह की, अमर वीर गाथा उज्जवल।
सन बांसठ का था साल, अक्टूबर का ठंडा मौसम
हिमगिरि पर बर्फीली फुहार, सब और बिछी ठंडी जाजम
हिंदी चीनी भाई-भाई का, नारा दे, बढ़ गया चीन
ओ' शांति समर्थक भारत की, सीमाओं पर चढ़ गया चीन
तब मातृभूमि की रक्षा में, लहराया भारत का यौवन
विस्तारवाद के पंजों से, टकराया भारत का यौवन
दुश्मन की सहने शैतानी, लद्दाख क्षेत्र का था अंचल
शैतानसिंह की थी कमान, मेजर था लपटों-सा चंचल।
जब तक क्षिप्रा में है कल कल, जब तक गंगा का जल निच्छल
तब तक मेजर शैतानसिंह की, अमर वीर गाथा उज्जवल
उस रोज सुबह संदेशा ले, जैसे किरणें उतरी भू पर
वीरों ने आँख मली अपनी, देखी हलचल कुछ दूरी पर
मोर्चा जमा तैनात किया, मेजर ने सबको क्षण भर में
गर्माई ले जम गे हाथ, ट्रिगर पर सबके क्षण भर में
ओ' पलक मारते ही देखा, दीमक-सी बढ़ती सेनाएँ
सूरज पर बढ़ती जाती है, ज्यों काल ग्रहण की रेखाएँ
मुट्ठी भर सैनिक के बल पर, बोला मेजर मुठ्ठियाँ मसल
चीनी फणधर हत्यारों की डालो साथी ठुड्डियाँ कुचल।
जब तक क्षिप्रा में है कल-कल जब तक गंगा का जल निच्छल
तक तक मेजर शैतान सिंह कीअमर वीर गाथा उज्जवल।
कट कट किट-किट धाँय धाँय, छिड़ गया भयानक युद्ध तभी
बारूदी धुआं उड़ा हिम पर, कटिबद्ध सिपाही क्रुद्ध सभी
थे सधे हुए सब हाथ इधर, फिर वार कहीं खाली जाता
गोली से एक-एक तो क्या, सौ-सौ चीनी गिरता जाता
घायल भाई के सीने पर, धर पैर बढ़े आते चीनी
मरने को आगे को रो में, जबरन ठेले जाते चीनी
बढ़ती दुश्मन की बाढ़ों पर, गोली की मार पड़ी अविरल
गिनती के साथी खेत रहे, शैतान रहा पर आग उबल।
जब तक क्षिप्रा में है कल कल, जब तक गंगा का जल निच्छल
तब तक मेजर शैतान सिंह की, अमर वीर गाथा उज्जवल।
गोलियाँ अचानक खत्म हुई, क्षण भर को साहस खीज गया
पर तुरंत चढ़ा संगीन और कूदा दुश्मन से जूझ गया
जैसे गयन्द के घेरे पर, बेखौफ झपटता शेर-बबर
चीनी खेमे में हुआ शोर, संगीन कौंधने लगी प्रखर
सहसा पीछे से वार हुआ, लडख़ड़ा उठा पूरा शरीर
फिर भी कुन्दे से वार किया, लड़ते-लड़ते गिर गया वीर
शोणित की धारा बह निकली, पर धन्य शौर्य तरेा अविचल
बलिदानी तेरी स्मृति ही, स्वाधीन देश का है सम्बल।
जब तक क्षिप्रा में है कल कल, जब तक गंगा का जल निच्छल
जब तक मेजर शैतानसिंह की, अमर वीर गाथा उज्जवल।
है धन्य जोधपुर वीर प्रसू, नर नाहर-सा शैतान दिया
जिसने पौरुष की दी मिसाल, भारत को गौरव दान दिया
गणगौर नारियाँ गाती हैं ले, साध वीर वर को पा लें
साहस की कथा सुनाती हैं, हर गाँव-गाँव की चौंपालें
भारत ने परमवीर चक्र दे, शैतानसिंह का किया मान
कल तक जिसको ना पहिचाना, उसको सारा जग गया जान
जिस जगह तुम्हारा ख़ून गिरा, खिल उठे वहाँ पर रक्त कमल
निज मातृभूमि हित मिटने की, दे रहे प्रेरणा जो प्रति पल।
जब तक क्षिप्रा में है कल कल, जब तक गंगा का जल निच्छल
तब तक मेजर शैतानसिंह की, अमर वीर गाथा उज्जवल।