कुछ सूखे फूलों के
गुलदस्तों की तरह
बासी शब्दों के
बस्तों को
फेंक नहीं पा रहा हूँ मैं
गुलदस्ते
जो सम्हालकर
रख लिये हैं
उनसे यादें जुड़ी हैं
शब्दों में भी
बसी हैं यादें
बिना खोले इन बस्तों को
बरसों से धरे हूँ
फेंकता नहीं हूँ
ना देता हूँ किसी शोधकर्ता को
बासे हो गये हैं शब्द
सूख गये हैं फूल
मगर नक़ली नहीं हैं वे न झूठे हैं!