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कुछ हमने गीत लिखे / कमलेश द्विवेदी

कुछ हमने गीत लिखे अपने सम्बंधों के.
जो किये स्वयं से ही ऐसे कुछ द्वंद्वों के.

कुछ वचन अधूरे हैं
कुछ कोमल स्मृतियाँ।
कुछ भाव हमारे हैं
कुछ तेरी आकृतियाँ।
महके थे स्वप्न कभी जिनसे उन गंधों के.
कुछ हमने गीत लिखे अपने सम्बंधों के.

जो मन में है पीड़ा
उसका आभास लिये।
ये पंक्ति-पंक्ति में है
कितने वनवास लिये।
जो हुये नहीं पूरे ऐसे अनुबंधों के.
कुछ हमने गीत लिखे अपने सम्बंधों के.

तप कहीं भगीरथ सा
तृष्णा है चातक सी.
वेदना यक्ष-सी भी
इनमें है रची-बसी
जो तोड़ न पाये हम ऐसी सौगंधों के.
कुछ हमने गीत लिखे अपने सम्बंधों के.