जो मिल गया
खा लिया
जहाँ पड़ा
वहीं सो लिया
जिसने पुचकारा
उसका हो गया
धूप-बारिश
सर्दी-गरमी
कोई छाया नहीं
कोई छतरी नहीं
कोई आग नहीं
कोई घर नहीं
फिर भी कोई मानता नहीं
लगती नहीं फिर भी लाइन
दर्शन के लिए
इससे बड़ा तपस्वी कौन होगा!
जो मिल गया
खा लिया
जहाँ पड़ा
वहीं सो लिया
जिसने पुचकारा
उसका हो गया
धूप-बारिश
सर्दी-गरमी
कोई छाया नहीं
कोई छतरी नहीं
कोई आग नहीं
कोई घर नहीं
फिर भी कोई मानता नहीं
लगती नहीं फिर भी लाइन
दर्शन के लिए
इससे बड़ा तपस्वी कौन होगा!