विकारां सूं मुगती पावण
धार लेवै आपरौ
अनाद अखूट
सरूप।
नित अर निरपेख
व्हियां
थूं !
इस्ट, अनिस्ट
अर तटस्थ
जैड़ा बजर सबदां नै
प्राण सूंपता
अेक-मेक व्हे जावै
थारा सगळा
गुण।
समाय जावै
सत में सत
रज में रज
तम में तम
थूं व्हे जावै
जथाजोग।
औ जथाजोग होवणौ ई
थारौ पाछौ
जलमणौ है
मां!