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कुळं बुळांवती आंत / ओम पुरोहित कागद

उण
उडाया दिन भर
चिड़ी-कगला
बाजरी रै खेत सूं
सिंझ्या पड़ी
सोयौ चैन सूं
पण
भूखा नीं सोया
चिड़ी-कगला
बां री भांत
कद हुवै
अड़वां रै पेट में
कळबुळांवती आंत!