टिप्पणी: ख प्रति में इस अंग का पहला दोहा यह है-
साईं सौं सब होइगा, बंदे थैं कुछ नाहिं।
राई थैं परबत करे, परबत राई माहिं॥1॥
अणी सुहेली सेल की, पड़ताँ लेइ उसास।
चोट सहारै सबद की, तास गुरु मैं दास॥1॥
खूंदन तो धरती सहै, बाढ़ सहै बनराइ।
कुसबद तो हरिजन सहै, दूजै सह्या न जाइ॥2॥
सीतलता तब जाणिए, समिता रहे समाइ।
पष छाड़ै निरपष रहै, सबद न दूष्या जाइ॥3॥
टिप्पणी: ख काट सहैं। साधू सहै।
कबीर सीतलता भई, पाया ब्रह्म गियान।
जिहिं बैसंदर जग जल्या, सो मेरे उदिक समान॥4॥610॥