कैकि मि स्वाणी हवेली छै
कैखुणि मि झोव्पडि ब बण्गे
मयाली सुहागिण रै मि कैकी
कैखुणि मि डंसिलि रांड बण्गे।
भग्यान लेन्दी-रुमाळी की, पलोस करि कैन
क्वे अब, निर्भगी डंगर बोळी छोड़ीगे
हंसे-हंसे लंपसार करदू छै क्वी
क्वे अब कंठ भरी उमाळ् दे ग्ये।
जंत-जोड़ करि, मैं सजे-धजे कैन
कैन गळताणी दे-दे नयीं ख्वजायी
सान समजदा छाँ क्वे अपणी बोली मैं खुणि
कैन त्वहीन समझी अब मुख लुकायी
अथा उबरा-बोंड
धिधराट-भिभडाट् मचांदा छाँ, गुरबळा... कैका
क्वे किराया-किटों मा, हिटणु कु सगोर सिखाणा छायी
क्वे छज्जा मा बैठी दूर तलक बाटू देखदा छां मयाली कु
कैका मोर अग्वाड़ी अब ईंटों कु जंगळ बण ग्यायी।
संकल्प लीन कैन यख करम पैटाळी
क्वी एक रात भी नि टिकी धडम,धरम छोड्याली
हिम्मत करि कैन माँ माटी समाळी
कैन हिम्मत तोड़ी अब बोग धर्याली।
प्रकृति अर परिवर्तन क्या होन्दु
खूब समजदू छौं मैं भी
भैरक चकम की भीतरी पीड़ा
खूब बिंगदु छौं मैं भी
ये का खातिर युगों कु इतियास
मेरा खुट्टा थौर धर्याँ छिन्
ब्वे छोड़ी भौतिक विकास करी जोन
वु भीड़क बीच भरमाणा छिन्।
इनि भी नि????
सब् स्याल बणि उड़्यार बटिन,
लुक-लूकी के द्यखणा
क्वे मथि-मुलि, सब तरां ऐ जे
मुल्ककी पैरादारी करणा
तीज-त्यौहार, सुख-दुःख मा
क्वी मेरा धोर ऐ जांदा
क्वी पल्ले कि रुवे देखी के
टेमक टमट्याट बते जांदा।
ब्वे दूधs की लाज ताक धरीं
मातृ भाषाक तिरिस्कार होणु छिन
जड़-जमाल तें गंवार क्या समझदा
ते खातिर तुम लाट साब बण्यां छिन
सात समुदर पार मेरा नौन्याल
प्रीत-गीत मेरा गांदा छिन
अफ़सोस वों फर, जू यख रे किन भी
ब्रह्म संकर बण्या छिन्
ब्रह्म संकर बण्या छिन्।
कैकि मि स्वाणी हवेली छै
कैखुणि मि झोव्पडि बणगे
मयाली सुहागिण रै मि कैकि
कैखुणि मि डंसिलि रांड बणगे।