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कृतज्ञ / मनोज श्रीवास्तव

कृतज्ञ

परोसा भूखे तन की थाली में
स्नेह का सतरंगा व्यंजन,
उड़ेला प्यासे मन की प्याली में
जीवन-संगीत का गुंजन
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झुलाया, अलमस्त सांसों की डोर पर
नचाया, धड़कते दिल की मृदंगी थाप पर
विचराया, आहों के सागर-तट पर

झनकाया, आंखों की सूनी नाली में
यादों का झन-झन
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भरमाया, मुस्कान से खिंचती लकीरों में
भटकाया, भौंहों के रोप-वे पर
बौराया, मंदिर निगाहों के रसपान से
बरसाया, पथराई-मुरझाई हथेली में
चुंबन-सुख-रंजन
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सुलाया, नैनों में बसा, पलकों की थपकी से
नहलाया, कपोल पर बैठा, त्वचीय धूप से
सहलाया, होठ-शैय्या पर सुला, जिह्वा से

लगाया, धूमिल जीवन-रेखा में
नैनों का अंजन.
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