बाँसुरी के रंध्रों से
बहने दो स्वर
रेशा-रेशा मुक्त कर दो
शब्दों के हर झंझावात से
कृष्ण !
बचा, रचा-बसा
रहने दो मुझमें, केवल
तन्मय धुन का उत्सव.
बाँसुरी के रंध्रों से
बहने दो स्वर
रेशा-रेशा मुक्त कर दो
शब्दों के हर झंझावात से
कृष्ण !
बचा, रचा-बसा
रहने दो मुझमें, केवल
तन्मय धुन का उत्सव.