Last modified on 8 जून 2016, at 01:00

केकरोॅ कथा चमेली-बेली / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

केकरोॅ कथा चमेली-बेली।

ई एकान्त में गुमसुम-गुमसुम
के बोलै छै चुपचुप-चुपचुप,
पानी में ज्यों बूंद छतोॅ सें
रही-रही केॅ टुपटुप टुपटुप;
सब बोलै छै एक्के लेॅ बस
कहाँ बसै छै रूप-सहेली?

कैन्हैं हेनोॅ मन बेकल छै
की अरूप रं रूप कँवल छै,
आगू कांही नै छै कुछुवोॅ
पीछू छाया के संबल छै;
एक प्रिया बिन की प्राणे ई
सौंसे जीवन एक पहेली।

ढेंस कथू लेॅ केकरोॅ देवै
की आपनोॅ दुख केॅ सहलैवै
दोनों ओर बराबर आँसू
जन्नें कविता कलम घुमैवै;
दुख काटै छै सूरजोॅ ओतनै
जत्तेॅ हुन्नें रात अकेली।