जो विद्युत की द्युति कटाक्ष है
जो नग नागों की कृपाण है
वही केन है
इस प्रदेश के
जीर्ण जनों की जीवित धारा
बहती है जैसे मद बहता
गंडस्थल से गज के;
ध्वनि का धैवत
जैसे बहता धृति से निर्गत;
हार हारती, वह न हारती।
रचनाकाल: १२-०२-१९६२
जो विद्युत की द्युति कटाक्ष है
जो नग नागों की कृपाण है
वही केन है
इस प्रदेश के
जीर्ण जनों की जीवित धारा
बहती है जैसे मद बहता
गंडस्थल से गज के;
ध्वनि का धैवत
जैसे बहता धृति से निर्गत;
हार हारती, वह न हारती।
रचनाकाल: १२-०२-१९६२