वन-घासों के बीच
झिलमिलाते इतने दीप!
इस निर्जन वन-खंडिका में
संध्याकाश के नीचे
कौन धर गया?
क्रीक के दोनों ओर,
ढालों पर, निचाइयों में
और हरी-भरी ऊँचाइयों पर भी
सघन श्यामलता में दीप्त होते,
चंचल हवा से अठखेलियाँ करते
कितने -कितने दीप!
सुनहरी लौ के प्रतिबिंब
तल की जल-धारा में बहते उतराते,
सीढ़ियों पर बिखर-बिखर
लहरों के साथ बहे चले जा रहे.
इस विजन में फूले हैं अनगिनती
सुनहरे पॉपी,
उजास बिखेरते,
इस एकान्त साँझ में!