केवल रामहीसे मांगो-1
(25)
रीति महाराजकी , नेवाजिए जो माँगनो , सो
दोष -दुख दारिद दरिद्र कै -कै छोड़िये।
नामु जाको कामतरू देत फल चारि , ताहि,
‘तुलसी’ बिहाइकै बबूर-रेंड़ गोड़िये।।
जाचै को नरेस, देस-देसको कलेसु करै
देहैं तौ प्रसन्न ह्वै बड़ी बड़ाई बौड़िये।
कृपा-पाथनाथ लोकनाथ-नाथ सीतानाथ,
तजि रघुनाथ हाथ और काहि ओड़िये।26।
(26)
जाकें बिलोकत लोकप होत, बिसोक लहैं सुरलोक सुठौरहि।
सो कमला तजि चंचलता , करि कोटि कला रिझवै सुरमौरहि।।
ताको कहाइ, कहै तुलसी, तूँ लजाहि न मागत कूकुर-कौरहि।
जानकी-जीवनको जनु ह्वै जरि जाउ सो जीह जो जाचत औरहि।26।