केवल रामहीसे मांगो-2
(27)
जड पंच मिलै जेहिं देह करी, करनी लखु धौं धरनीधरकी।
जनकी कहु, क्यों करिहै न सँभार, जो सार करै सचराचरकी।।
तुलसी! कहु राम समान को आन है, सेवकि जासु रमा घरकी।
जगमें गति जाहि जगत्पतिकी परवाह है ताहि कहा नरकी।27।
(28)
जग जाचिअ कोउ न , जचिअ जौं जियँ जाचिअ जानकिजानहिं रे।।
जेहिं जाचत जाचकता जरि जाइ, जो जारति जोर जहानहिं रे।।
गति देखु बिचारि बिभीषनकी, अरू आनु हिएँ हनुमानहिं रे।।
तुलसी! भजु दारिद-दोष-दवानल संकट-कोटि -कृपानहिं रे।28।