केवल रामहीसे मांगो-6
विनय
( छंद 35 से 36 तक)
(35)
सो जननी, सो पिता, सोइ भाइ, सो भामिनि, सो सुतु, सो हितु मेरो।।
सोइ सगो , सो सखा, सोइ सेवकु, सो गुरू, सो सुरू साहेबु चेरो।।
सो ‘तुलसी’ प्रिय प्रान समान, कहाँ लौं बनाइ कहौं बहुतेरो।
जो तजि देहको, गेहको नेहु, सनेहसों रामको होइ सबेरो।35।
(36)
रामु हैं मातु, पिता, गुरू , बंधु, औ संगी, सखा , सुतु , स्वामी, सनेही।
रामकी सौंह , भरोसो है रामको, राम रँग्यो, रूचि राच्यो न केही। ।
जीअत रामु, मुएँ पुनि रामु, सदा रघुनाथहि की गति जेही।
सोई जिये जग में , ‘तुलसी’ नतु डोलत और मुए धरि देही।36।