केशव ऐसा शंख बजाना।
दुश्मन की छाती दहलाना॥
कंस द्वार ललकार रहा है
अब तो छोड़ो रास रचाना॥
गली गली लुटती द्रुपदाएँ
मुश्किल इनकी लाज बचाना॥
बचपन गोपालन सब छोड़ो
तुम्हें समर का साज सजाना॥
वंशी त्यागो कृष्ण कन्हैया
चक्र सुदर्शन पड़े उठाना॥
है अधर्म-खग पर फैलाये
इन पंखों को काट गिराना॥
था आश्वासन दिया तुम्हीं ने
मोहन अपना कौल निभाना॥