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केसरिया ध्वज / बाबा बैद्यनाथ झा

राष्ट्रप्रेम की प्रबल भावना,
जिसके मन में पलती है॥
केसरिया ध्वज लिए हाथ में,
वैसी नारी चलती है॥

वेदम़ंत्र की सभी ऋचाएँ,
इस ध्वज में अंकित रहतीं।
मर्यादा की सब सीमाएँ,
इसमें भी संचित रहतीं।
वास इसी में सब तीर्थों का,
प्रभु लेते अवतार यहाँ
परा और अपरा विद्याएँ,
इसमें अभिमंत्रित रहतीं॥

श्रद्धा से नत हर मानव की,
हर इच्छा नित फलती है।
केसरिया ध्वज लिए हाथ में,
वैसी नारी चलती है॥

गंगा यमुना सरस्वती के,
संगम में नहलाते हम।
विश्व बंधुता बढ़ने लायक,
मोहक गीत सुनाते हम।
विहित कर्म में रत रहकर हम,
इष्ट भजन भी हैं करते-
सच्चाई पर चलते भी हैं,
जग को पथ दिखलाते हम।

दुश्मन की भी नहीं किसी की,
दाल यहाँ पर गलती है।
केसरिया ध्वज लिए हाथ में,
वैसी नारी चलती है॥

सब मिलकर हम जीना सीखें,
इस ध्वज का शुभ नारा है।
नहीं करें विद्वेष किसी से,
जग परिवार हमारा है।
इस ध्वज के ही नीचे रहकर,
जीते हम भारतवासी
पाप नाशिनी गंगा की भी,
बहती निर्मल धारा है।

घर-घर में ही यहाँ अहर्निश,
ज्योति ज्ञान की जलती है।
केसरिया ध्वज लिए हाथ में,
वैसी नारी चलती है॥