बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
केसर भई राधिका रानी,
गलन गलन मिहकानी।
चम्पा, जुही केतकी बेला
ललत बेल लिपटानी
जिनसें भौत तड़ंगें उठतीं
ज्यों गुलाब कौ पानी।
ईसुर किसनचन्द मधुकर नें
लइ सुगन्द मनमानी।
केसर भई राधिका रानी,
गलन गलन मिहकानी।
चम्पा, जुही केतकी बेला
ललत बेल लिपटानी
जिनसें भौत तड़ंगें उठतीं
ज्यों गुलाब कौ पानी।
ईसुर किसनचन्द मधुकर नें
लइ सुगन्द मनमानी।