कैवेन्टर्स ईस्ट उस मकान का नाम था जिसमें अज्ञेय जी रहते थे
उस दिन
जब गर्म दूध से जला अपना हाथ
मेरे कांधे पर रख
तुम ने खिंचवाई थी
तस्वीर
तो मुझे कहाँ मालूम था कि तुम
मुझे सब्ज़-बाग़ दिखा कर
मेरे कमज़ोर कांधे की कुव्वत<ref>शक्ति</ref> देख रहे हो!
अब तो ये सवाल भी पूछूँ तो किस से पूछूँ कि
क्या तुमने उस वक़्त
कांधे की क़ुव्वत की कमज़ोरी भी भाँपी थी?
नहीफ़ो-नाज़ार<ref>दुबला-पतला और कमज़ोर</ref> कांधे पर
तुम्हारी पोरों के लम्स<ref>स्पर्श</ref> का लम्बा लम्हा
दूर तक फैला हुआ है और
मैं
तन्हा<ref>अकेला</ref> खड़ा हूँ...
शब्दार्थ
<references/>