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कैसा जादू / कुमार रवींद्र

दिन वसंत के
और तुम्हारी हँसी साथ में
              कैसा जादू
 
कनखी-कनखी
तुमने ऐसा टोना मारा
बौराया वसंत का दिन
पूरा बेचारा
 
हम भी दिन भर
फिरे अंगारा लिये हाथ में
               कैसा जादू
 
हमने छुए फूल होंठों के
तुम मुस्काईं
देह हमारी -
त्तुमने कलियाँ वहीँ खिलाईं
 
बार-बार
यह रितु आये - हम रहे घात में
                  कैसा जादू
 
आई है पहली फुहार
फागुन है बरसा
आँगन रह-रह भीज रहा
बंजर भी सरसा
 
याद तम्हारा
हमें रूठना बात-बात में
             कैसा जादू