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कैसी बाधा है / गुलरेज़ शहज़ाद

प्रेम अगन में
रात जलाई
दिन झुलसाया
राधा बनकर
कष्ट उठाया
नीर बहाए
चैन गंवाई
किंतु प्रेम से
बाज़ न आई
प्रेम नगर की
राज दुलारी
मैं तुझ पर
जाऊं बलिहारी
अब आई है
मेरी बारी
मैं राधा तू
कान्हा हो जा
मैं अब जागूं
तू अब सो जा
मुरली फूंके तू
मैं बाजूं
तोरी लगन में
टूट के नाचूं
प्रेम में सब
आधा आधा है
फिर इस में
कैसी बाधा है