सफेद चादर में लिपटी
कैसी यह रात है
जिसमें अंधकार की
शीतल छाया नहीं
हर तरफ
उजास ही उजास है
और आंखों में
कहीं नींद का साया नहीं...
थका-थका
बासी अलसाया
कैसा यह सहर है
जो दूर-दूर तक
धुआं ही धुआं है...
सफेद चादर में लिपटी
कैसी यह रात है
जिसमें अंधकार की
शीतल छाया नहीं
हर तरफ
उजास ही उजास है
और आंखों में
कहीं नींद का साया नहीं...
थका-थका
बासी अलसाया
कैसा यह सहर है
जो दूर-दूर तक
धुआं ही धुआं है...