कैसे-कैसे मौसम आए।
वो कोमल गांधार परसते,
हमने धु्रपद धमार लगाए।
साँस-साँस सुर लय, पैमाने
साझे जीवन की गति मापें,
संगत के तबले-मृदंग पर
पड़ती रहीं निरंतर थापें;
प्राण बंजरों में अँकुवाए,
घन घमंड नभ रहे गरजते
धरा सुहागिन सोहर गाए।
पुरवाई ने छेड़े सरगम,
पछुआ ढीले तार कस रही,
यह छोटी-सी छाती, लेकिन
आज समूची सृष्टि बस रही।
डाल-डाल कोयल इतराए
रंगोली-मेंहदी के जैसा-
मुझको आकर कोई रचाए।
लौटें लखन, सिया जू लौटें,
लौटें राजा राम गेह को,
गूँगा हूँ, पर वाणी दूँगा,
इस उछाह को उस सनेह को;
दुनिया मुझे भले बहकाए
मैं तो बंदिश हूँ माटी की-
कोई गाए, कोई बजाए,