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कैसे रुक पायेगा / रोहित रूसिया

कैसे रुक पायेगा
बोलो
सपनों का व्यापार

रूठे-रूठे दिन
फिरते हैं
आँगन में
जाने कितने
शिकवे भर कर
दामन में
हर पल
याद दिलाते
मुझको
जैसे मेरी हार


दीवारें घर की
करती हैं
प्रश्न कई
होते नित ही
मायूसी के
जश्न कई
फिर भी
चलता रहता है
जीवन का
कारोबार

बिकते है
सपने यदि तो
बिक जाने दो
कुछ सुकून की
आमद अब
हो जाने दो
सपनों को भी
अब नींदों की आँखें
रही पुकार

कैसे रुक पायेगा
बोलो
सपनों का व्यापार