कैसे वह दुखिया माने, क्यों समझे वह अपने को दीन।
जिसके तन-मन वे समझेंगे, भोगेंगे दुख-दैन्य नवीन॥
रखें शरीर, न रखें भले ही, रखें निकट अति, रखें सुदूर।
रखते वे अपने में नित ही, रहते स्वयं सदा भरदूर॥
कैसे वह दुखिया माने, क्यों समझे वह अपने को दीन।
जिसके तन-मन वे समझेंगे, भोगेंगे दुख-दैन्य नवीन॥
रखें शरीर, न रखें भले ही, रखें निकट अति, रखें सुदूर।
रखते वे अपने में नित ही, रहते स्वयं सदा भरदूर॥