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कैसो ये देश निगोरा / ब्रजभाषा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कैसो ये देश निगोरा, जगत होरी ब्रज होरा॥
मैं जमुना जल भरन जात ही, देखि रूप मेरौ गोरा।
मोते कहें चलौ कुंजन में, तनक-तनक से छोरा॥
परे आंखिन में डोरा। कैसौ.

जियरा देखि डरानौ री सजनी, लाज शरम की ओरा
कहाँ बालक, कहाँ लोग लुगाई, एक ते एक ठिठोरा॥
काहू सों काहू कौ जोरा॥ कैसौ.

निपट निडर नन्दकौ री सजनी, चलत लगावत चोरा
कहत ‘गुमान’ सिखाय सखन मेरौ, सिगरौ अंग टटोरा
न मानत करत निहोरा॥ केसौ.