अब हम बिल्कुल भूल चुके हैं
आजादी के मानी क्या हैं
क्या होता है सबका भाई-भाई होना
सबका सबके दुख में रोना
सब कुछ पाकर
सबके हित में
सब कुछ खोना
कैसे समझोगे तुम सचमुच
उन युवकों की गहन वेदना
कॉलसेंटर में जो
जग कर रात-रात भर
गैरों की बोली-बानी में
अपने को ढाला करते हैं
अपने को घोला करते हैं
जगरमगर के अन्धकार में
अपनी नींद और सपनों को
अपने भूले जागरणों को बेचा करते
औने-पौने
वे जो अपने आसपास से जबरन खुद को
काट रहे हैं
मैं उन बच्चों के पड़ोस में ही रहता हूँ
वे मेरे घर के बच्चे हैं
मैं उन बच्चों की विस्मृतियों में रहता हूँ
विस्मृतियों के अपने न्यारे नगर और
और धरती आकाश अलग होते हैं ।