Last modified on 29 अक्टूबर 2015, at 03:20

कोई एक भी / पारुल पुखराज

कोई स्वप्न नहीं
नहीं
कोई एक भी

दाँव-सा
जिस पर खेलूँ
जीवन

चुभे
जो

बंजर नींद
को