कोई ऐसा...
कि जिसको देखकर महसूस होता है
नफासत का कोई बेजोड़ रक़्कासा
हवा से खेलता बेफिक्र हो आंखे मिलाता है
कोई तारा ...
फलक में डोर से टांगा
मचलकर झूमकर मदमस्त
कोई गीत गाता है
कभी लगता...
भरे मय के प्याले-सी तुम्हारी बात कानों में
करे है गुफ्तगू, इस ठांव
उजाला खींच लाता है
है क्या माया ....
वही तारा...जो हर तारे में सबसे खास होता है
चटख से रंग से धोया ..अचानक सूख जाता है
कोई सागर...
लहर को चूमकर किरणें जहां चांदी उगाती थी
लगे बदरंग ... मटमैला
ज्यों रिसकर बह गया पानी, कटोरा रीत जाता है
बंधे मन से दिया जो स्वर्ण तुमने ... धिक्
नहीं कंचन ... वो माटी है
ये दाहक शब्द जल-जलकर, जहर का स्वाद पी-पीकर
बना पाषाण है तपकर
ये पत्थर लौटता फिर-फिर जिगर को चाक करता है