पेशतर इससे के ये वक़्त भी ज़ाया जाये
रस्मे उल्फ़त को चलो मिल के निभाया जाये
इश्क़ ऐसा भी नहीं दिल से भुलाया जाये
ये वो दीपक है जिसे रोज़ जलाया जाये
बाद के रंजो अलम पहले से क्यूँ सोचें हम
राहे उल्फ़त पे क़दम हंस के बढाया जाये
आपका नाम जो लिक्खा है हमारे दिल पर
अब किसी तौर ये दिल से न मिटाया जाये
वक़्त की चाल का अन्दाज़ समझना होगा
इससे पहले के कोई ख़्वाब सजाया जाये
हम भटकते हैं शबो रोज़ किनारों पे यहाँ
उनसे उस पार से इस पार न आया जाये
डर है हमको कि मोहब्बत न कहीं रुस्वा हो
इसलिये नामे सनम लब पे न लाया जाये
ये नसीहत है , हिदायत भी है दुनिया वालो
भूलकर दिल न किसी का भी दुखाया जाये
ये दुआ रोज़ ही 'आनन्द' किया करते हैं
आग में ग़म की न अपना न पराया जाये