समस्याएं होती है
तुम्हारे लिए
घर की
देश-विदेश की
पास-पड़ौस की
आर्थिक मंदी की
मुद्रा स्फीति
शेयर बाजार
और मूल्य-सूचकांक की।
जूझो भले ही इन से
तुम ठाट-बाठ से।
मगर
गरीबी की रेखा के नीचे दबे
उस करणिये की समस्या का
केाई तो हल कीजिए
जो
दो जून रोटी के लिए
अपना यौवन
उजाड़ रहा हैं
और कबाड़ रहा है
भूख दर भूख।
उसे
कभी पता नहीं चलता
कब बूढ़ापा आता हैं
कब जवानी चली जाती हैं।
वह बेचारा
तुम्हारे लिए
वोट बन कर
तुम्हारी तरफ
आस में ताकता
मौत के मुंह में
चला जाता है
बिना कोई खबर बनें।