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कोई दिन / मोहन राणा

सुबह कोई स्वर देती
और पेड़ एक झौंका
कि चल पड़ता बंद आँखों बाहर जो थमा,
मैं उसे क्या कहूँ
कोई दिन
आँख खुलते ही