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कोई बहाना आ गया / प्रेमलता त्रिपाठी

प्रेम में कोई बहाना आ गया।
दूर से आँखें चुराना आ गया।

प्रीत की नौका बढ़ी जब बाँवरी,
तोड़कर बंधन समाना आ गया।

राह काँटों से भरी होगी अगर,
पार होंने मन सयाना आ गया।

जीतना मैंने न चाहा था कभी,
हार के भी मुस्कराना आ गया।

आज भी रातें जगाती हैं मुझे,
गीत यादों में पुराना आ गया।

मीत हम तुम दो किनारे हो गये,
मान झूठा क्यों दिखाना आ गया।

रूठ कर वह जा नहीं सकते कहीं
प्रेम तुमको अब रिझाना आ गया।